अन्धकार के घेरे में Andhkaar Ke Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अन्धकार के घेरे में Andhkaar Ke

अन्धकार के घेरे में

में ऊब चूका हूँ संसार से
सब कुछ लगता असार से
माया की भरमार है चारो ओर
मुझे नहीं भाता उठता शोर।

में ज्ञानी तो नहीं
फिर भी मानी सही
सबका निचोड़ एक जैसा
फिर जीवन कैसा?

संसार का नियम है
सब अपने विचार पर कायम है
मैंने जीवन नहीं गंवाना है
अपने आपको प्रभु से परिचित करवाना है।

क्या होगा ऐसे ही जीवन व्यतीत करकर?
क्या हांसिल होगा इसमें ज्यादा डूबकर
सब कुछ तो यहीं छोड़ जाना है
सब से चिपक के रहना बस बेईमाना है।

इसलिए मेरा जाना ही सुखदायी होगा
आप सब को मेरा जाना कष्टदायी लगेगा
पर सबको अपना मन उसमे ही लगाना है
उसका नाम लेना और समय व्यतीत करना है।

जितना जल्दी अंतर्मन जान लो, अच्छा है
जीवन से लगाव ही मात्र छलावा है
कर लो निश्चय आज ही अपने बारे में?
वर ना रह जाओगे अन्धकार के घेरे में।

अन्धकार के घेरे में Andhkaar Ke
Wednesday, November 2, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 03 November 2016

reema shing Unlike · Reply · 1 · 5 hrs

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 03 November 2016

welcome virendra kumar Unlike · Reply · 1 ·

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 02 November 2016

welcome tarun mehta Unlike · Reply · 1 · Just now

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 02 November 2016

जितना जल्दी अंतर्मन जान लो, अच्छा है जीवन से लगाव ही मात्र छलावा है कर लो निश्चय आज ही अपने बारे में? वर ना रह जाओगे अन्धकार के घेरे में।

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success