अन्धकार के घेरे में
में ऊब चूका हूँ संसार से
सब कुछ लगता असार से
माया की भरमार है चारो ओर
मुझे नहीं भाता उठता शोर।
में ज्ञानी तो नहीं
फिर भी मानी सही
सबका निचोड़ एक जैसा
फिर जीवन कैसा?
संसार का नियम है
सब अपने विचार पर कायम है
मैंने जीवन नहीं गंवाना है
अपने आपको प्रभु से परिचित करवाना है।
क्या होगा ऐसे ही जीवन व्यतीत करकर?
क्या हांसिल होगा इसमें ज्यादा डूबकर
सब कुछ तो यहीं छोड़ जाना है
सब से चिपक के रहना बस बेईमाना है।
इसलिए मेरा जाना ही सुखदायी होगा
आप सब को मेरा जाना कष्टदायी लगेगा
पर सबको अपना मन उसमे ही लगाना है
उसका नाम लेना और समय व्यतीत करना है।
जितना जल्दी अंतर्मन जान लो, अच्छा है
जीवन से लगाव ही मात्र छलावा है
कर लो निश्चय आज ही अपने बारे में?
वर ना रह जाओगे अन्धकार के घेरे में।
welcome tarun mehta Unlike · Reply · 1 · Just now
जितना जल्दी अंतर्मन जान लो, अच्छा है जीवन से लगाव ही मात्र छलावा है कर लो निश्चय आज ही अपने बारे में? वर ना रह जाओगे अन्धकार के घेरे में।
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reema shing Unlike · Reply · 1 · 5 hrs