अपना बनाना Apnaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अपना बनाना Apnaa

अपना बनाना

अपना जब पराया लगने लगे
तब ही सोचने लगेंगे
ये क्या हो रहा है जीवन में?
आंधी का संकेत क्यों मिल रहा है गुलशन में?


थम जाने दो तूफ़ान
ना मचाना कोहराम
धीरे से सोचना है हमारा काम
फिर लगने लगेगी सुनहरी शाम।

हो सकता है नजर का धोखा
आँखों ने जो देखना था वो नहीं देखा
मन ने भी अपना रास्ता चुन लिया
बस फिर तोआंधी और तूफ़ान ने जगह ले लिया।

ये वजह नहीं हो सकती
नजरे बार बार धोखा नहीं खाती
अपनों पर प्यार ही है बरसाती
रोती प्यार से और हरखाती।

मेरे अपने अपने है
जिनको मैंने अपनाएँ है
गले से लगाकर पाला है
तभी तो इतना बोलबाला है।

ना रखेंगे कभी ऐसी सोच
जो करवाएगी अपनों से संकोच
होने तो बस हँसके जीना है
दूसरों को अपना बनाना है।

अपना बनाना  Apnaa
Saturday, May 20, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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ना रखेंगे कभी ऐसी सोच जो करवाएगी अपनों से संकोच होने तो बस हँसके जीना है दूसरों को अपना बनाना है।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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