अपनी गठरी Apni Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अपनी गठरी Apni

अपनी गठरी

'अमिर को लोग पूछते है ' कीसने कहा?
जिस के भी दिल में ये तुकका बहा
वो तो वहां का वहां ही रहा
अपनी बेबसी को कोसता रहा।

लोग क्यों आपकी मदद करेंगे?
क्या आप कभी दौड़ेंगे?
उनके सहायक बन के अपने जीवन की बाजी लगाके?
आप दूर जाकर हसेंगे और लगाएंगे ठहाके!

यदि आप हमेशा संगदिल रहे है
मिलझुलकर खेलदिली दिखा रहे है
आप लिखकर लीजिए 'दुनिया उतनी बुरी नहीं है '
स्वार्थ से भरी है पर सब आपपर निर्भर है।

कौन किसपर हमदर्दी जगाता है?
बस सिर्फ मरहम लगाता है
सही दोस्त है तो अपने से बन पड़े वो करता है
बाकि सब बहाना कर के चल पड़ता है।

पर येतो दुनियादारी है
आपकी सिर्फ चार दीवारी है
आपका अपना व्यहार कितना अच्छा है!
बस वोही आधार पृच्छा का है।

कर भला हो भला
और सदा टाल बला
'ना देना या ना लेना' जहाँ तक हो सके
और फिर लेना है तो रहो जबान के पक्के।

क्यों ना होंगे स्वार्थी और पक्के?
सब ने बढ़ना है आगे
अपनी गठरी खुद ही बांधनी है
जवाबदारी खुद ही समझनी है।


हमदर्दी किसको जताई जाती है?
जो लाचार, बेसहाय और अशक्त है
आप तो बस समय के मारे है
समय आएगा और तरीके बहुत सारे है।

अपनी गठरी Apni
Tuesday, August 22, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 22 August 2017

हमदर्दी किसको जताई जाती है? जो लाचार, बेसहाय और अशक्त है आप तो बस समय के मारे है समय आएगा और तरीके बहुत सारे है।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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