अपनी दस्तक खुद Apni Dastak Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अपनी दस्तक खुद Apni Dastak

अपनी दस्तक खुद

समय अपनी दस्तक खुद देता है
हर कोई बदलाव अपने हस्तक रखता है
बचपन का सपना हर कोई याद रखता है
समय आने पर यादें ही इंसान जिन्दा रखता है।

हैरानी की कोई बात नहीं
सुन्दर रात कभी रूकती नहीं
चाँद भी बादलो में छुप जाता है
दिन का उझाला अपना जलवा दिखाता है।

सब कोई अपने कलेवर बदल लेता है
जानवर भी करवट बदले खड़ा होता है
अपना जायजा खुदको लेना होता है
इंसान भी इस बात को लेकर चिंतित रहता है।


गुलशन में बहार का मौसम है
हर तरह के फूल मौजूद है
खुशनुमा सुबह और वातावरण में महक है
हम सब प्रकृति के बड़े चाहक है ।

बदलाव बिलकुल जरुरी है
पुराने पत्तो का गिरना बहुत ही आवश्यक है
एक का जाना और दूसरे का आगमन
यही तो है जिन्दगी का आवागमन।

न रखें मन में कोई दुर्भाव इस बदलाव से
सब कुछ ठीक ही होगा अनुभव से
हम ने सुना है और समझा है भवोभव से
कुदरत का एहसान कुबूल किया है सही भाव से।


हम ना होते धरती पर समझने के लिए
आते और मिट जाते सदा के लिए
उत्पत्ति और विनाश अपनी अपनी जगह होते
हम पशोपेश में रहते और आहत ही होते।

अपनी दस्तक खुद Apni Dastak
Wednesday, November 2, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 02 November 2016

हम ना होते धरती पर समझने के लिए आते और मिट जाते सदा के लिए उत्पत्ति और विनाश अपनी अपनी जगह होते हम पशोपेश में रहते और आहत ही होते।

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