अर्धांगिनी बनना चाहती हूँ
रुक जा, रुक जा, ओरी चंचल पवन
क्यों हो गया मेरा इतना पतन?
मैंने क्या सोचा था और क्या हो गया?
रुख हवा का क्यों पलटी खा गया?
उसका एक झोका मुझे कर देता था
अपने आप में मदहोशी का मजा देता था
प्यार का इतना आलम मुझे खामोश कर देता था
पर हवा का रुख धीरे से आगोश में ले लेता था
हर फूल मुझे झुककर अभिवादन कर रहा है
गुलशन का हर कोना मेरा विश्वास सम्पादन कर कर रहा है
में ख़ुशी से झूम उठती हु की यह सब क्या हो रहा है?
क्यों सब मेरा बेसब्री से जैसे पदचाप सुन रहे है?
पूरा मेघधनुष जैसे आकाश में छा गया है
अपने रंगो से जैसे मेरी जबानी बया कर रहा हो
मेरी सोच हर रंगो से फुट फुट कर व्यक्त हो रही है
उसका आकाश में फेल जाना ही मेरे वजूद की पुष्टि मानो कर रहा हो
मेरे पाँव धरती पर थिरक रहे है
मेरी धड़कन तेज और जबान मूक है
आँखे खुली की खुली मानो असमंजस में है
कैसे पेश आना इसी बात को लेकर पशोपेश में है
पता नहीं मुझ में इतना बदलाव क्यों हुआ है?
प्यार का बहाव स्वभाव में क्यों आ गया है?
मुझे प्यार का अंदाज अब धीरे धीरे आने लगा है
जवानी का मिजाज अपना रंग छोड़ने लगा है
प्यार का अंदाज ही एक मिसाल है
हर फूल में दीखता एक गुलाल है
रंग भरने की मानो होड़ सी लगी रहती है
जीवन पथपर अदभुत जोड़ बनी रहती है
राधा का स्नेह जैसे में महसूस कर रही हूँ
मीरा का अभिगम और साहस में सराह रही हूँ
जीवन के हर मोड़ पे में उनकी रहना चाहती हूँ
दासी नहीं पर अर्धांगिनी बनना चाहती हूँ
Manju Gupta kya khoob mehta ji badhayee 4 hrs · Unlike · 1
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welcome madhu agarwal n dharam chand sharma 2 secs · Unlike · 1
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Inderjeet Kaur shared your photo. 7 hrs · Wsheguru