..कि जैसे समय स्याह अंधेरे में भटक चुका था
कि जैसे एक गिलहरी
शिकारी कुत्ते की गिरफ़्त मे आ चुकी थी
कि जैसे किसी निश्छल-कलकल बहती धारा में
धधक उठी थी आग अचानक
कि जैसे एक तिलचट्टा उलट चुका था धरती पर
सड़क पार करते-करते एक बच्चा
कुचला गया था अभी..
जब बाज़ार की भाषा में
आहिस्ते से पूछा था तुमने
कि कविता के अलावे
और क्या करते हो?
▪️अरविन्द श्रीवास्तव
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