▪️ अरविन्द श्रीवास्तव
नहीं लगती कौवे की पंचायत
बिजली के तारों पर
...
●अरविन्द श्रीवास्तव
उन यादों को चमकाता हूँ मैं
जिसे समय ने बदरंग कर दिया है
...
..कि जैसे समय स्याह अंधेरे में भटक चुका था
कि जैसे एक गिलहरी
शिकारी कुत्ते की गिरफ़्त मे आ चुकी थी
कि जैसे किसी निश्छल-कलकल बहती धारा में
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भाड़ में जाओ दुनिया के खूबसूरत चेहरों
क्रांति गीत और लाल आकाश
प्रेम-मिलन के भावुक शब्दों
गंध की तलाश में भटकती आत्माओं
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सुख ने पता कर लिया था
अपनी चकाचौंध के चार दिन
इसलिए भी उसने
ठहरा कर अंधेरे को कसूरवार
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कितनी घबराहट और बेचैनी थी
एक स्त्री के बगैर
पहेलियाँ चक्कर काट रही थी
रसोई के इर्द-गिर्द
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उसकी साँसे गिरवी पड़ी हैं मौत के घर
पलक झपकते किसी भी वक़्त
लपलपाते छुरे का वह बन सकता है शिकार
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उस कपास को नहीं पहचानता
जिसने जन्म लेते ही
मेरा अंगरखा बनाने का आमंत्रण स्वीकार कर लिया था
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One day suddenly we will meet my love
With countless memories buried in our hearts
Like fire is buried in ashes
Like civilizations in ruins
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It was the time of celebration of drops
The drops were strutting
The drops were singing
They were dancing
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1.
She had forgotten the address of our house
The piece of paper on which I had written my address
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All our tiredness
Is visible in our poems
Depressive feelings and hypnotic words
By molding into poems
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I got the opportunity to play the lead role in a film being made in Germany - The Sound of Friendship: Warm Wavelengths in a Cold, Cold War A film by Anandita Bajpai (ZMO) which is based on India's relations with Radio Berlin International. The said film was screened at the Technical University in Berlin, in which I also got the opportunity to participate, in which important media persons of the world and famous personalities of the radio broadcasting world participated. This film is based on my days from 1980 to 90, when the world was divided into two camps during the Cold War and radio station was a powerful medium of ideological struggle. I was also a member of the DX department of important broadcasting centers of Eastern Europe - Radio Budapest, Radio Prague (Czechoslovakia) and Radio Berlin. You can include this in my literary activities! Got many national level awards, last year I got the opportunity to visit Singapore and Malaysia and now Germany in 2023 for literary and cultural tour.. A total of six poetry collections - Kaid Hain Swar Sare, Ek Aur Duniya Ke Baare Mein, Aafsos Ke Liye Kuch Shabd, Rajdhani Mein Ek Uzbek Ladki, recently 'Yeh Prithvi Ka Premkaal' and 'Prem Mein Kapas' have been published. Published in important literary magazines and newspapers of the country such as - Hans, Vagarth, Jansatta, Doaba, Parikatha, Pakhi, Friday, Aksharparv, Janpath, Saaksha, Dainik Bhaskar, Punjab Kesari, Hindustan, Prabhat Khabar etc.! Has participated in the events of Sahitya Akademi, New Delhi.. Writing continues unabated!)
कौवे के बारे में
एक जरुरी कविता❗
▪️ अरविन्द श्रीवास्तव
नहीं लगती कौवे की पंचायत
बिजली के तारों पर
घर के आस-पास
काँव-काँव करते हुए इनदिनों
कौवे ने अपनी मियाद पूरी कर ली है
या कि अनायास खत्म हो गया
उसके गले में अटकी अमृत बूंदों की किंवदंती या फिर
किसी पैंतरे की तरह चुपके-से लुप्त हो रहे हैं
हमारे छप्पर-आँगन से या नहीं तो
व्यस्त हैं वे सुदूर हिस्सों में
धान सूखने की खबरिया बन कर
लुप्त हो रहे हैं कौवे
बगैर किसी अल्टीमेटम के
या कि हमारी नगर सभ्यता से
मोह-भंग हो गया उनका
नहीं दे पा रहे हम उन्हें
साबुन-चम्मच जैसी छोटी-छोटी चीज़ों को
उड़ा ले जाने की इजाज़त
ब्रह्मांड के किस ग्रह की ओर पलायन कर रहे हैं कौवे
किस नई दुनिया की तलाश में
इस धरती से अपने अनुबन्धों को तोड़ते हुए
कूच कर रहे हैं कौवे
चुप हैं पर्यावरणविद्!
होता है संशय यह कि
किसी ऋषि ने शापित किया है इन्हें
किसी काग बाबा ने हरण कर लिया इनका
किसी तांत्रिक क्रिया का हिस्सा बनने से आ गई इन पर शामतें
किसी बहेलिये की आंखों में कांटा बन चुभ गये कौवे
कि मोबाइल के लिए एसएमएस साफ्टवेयर बनानेवाली कंपनियों ने
किसी साज़िश के तहत खदेड़ दिया इन्हें
कि किसी आगंतुक-आगमन की सूचना
अब नहीं पहुंच पाएं चौखट तक किसी की
कि सूचना पौद्योगिकी महकमें में गोपनीय बैठक हुई
इनके खिलाफ कोई
होता है संशय यह कि
इन्होंने किसी केमिकल लोचे में पड़कर
खो तो नहीं दी अपनी प्रजनन क्षमता
या कि उन्होंने बोल दिया बिन्दास-सा कोई शब्द
संशय यह भी है कि
किसी गुप्त अभियान का टार्गेट तो नहीं बन रहे वे
आखिर किस घात की चपेट में लुप्त हो रहे
हर वक्त विपत्तियों को भेदने में माहिर कौवे
खुशफहमी यह नहीं कि कौवे ने ही सिखाया हमें
छोटी-छोटी चीज़ों को छप्पर में छिपाने की कला
घड़े में कंकड़ डाल, पानी पीने का हुनर
अध्ययन के लिए ‘काग चेष्टा' वाली नसीहत
और झूठ बोलने पर काट खाने का डर
दूर हो रहे हैं हमारी सभ्यता से कौवे
नहीं पूछता कोई कौवे की खैरियत
नहीं ली जा रही कोई नोटिस
चर्चा में नहीं हैं कौवे
नहीं हो रही कोई गोष्ठी--कोई सम्मेलन
बयानबाजी भी नहीं हो रही इनके पक्ष में
लाख चिंताओं के बावजूद
आखिर क्यों नहीं आ रहा
कोई राष्ट्रीय वक्तव्य कौवों के लिए!
Our problems are only ours and no one else's. The world is turning into a burning ember and our problems are burning in it. Ignoring our irritation and annoyance, Children have stopped playing in the children's park and even the jugglers have fed in various tricks in the mobile app. The once skilled spectators do not look here giving the excuse of not having time. News of violence and murders slip in front of the eyes like intimate activities. The situations are extremely difficult but we do not get frustrated and disappointed and certainly not aggressive, even if we become aggressive, it does not show! I want to immerse my troubles in a deep sea far away from the narrow streets I am overwhelmed by the sound of all kinds of drums, music systems, vehicles In this world filled with advertisements, everything is acceptable to me, in an unacceptable posture With great difficulty we freed the kidnapped truth not so that Jhunjhuna becomes the mistress of some politician, he makes a lot of noise and we dance Let us pray for destruction against time, come We need new production Absolutely fresh! Immediately! Immediately!