बदल गएbadal Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

बदल गएbadal

Rating: 5.0

बदल गए

Wednesday, May 16,2018
8: 21 AM

प्रिय, तुम तो बदल गए
हवा का रुख अपनी और कर गए
थम सी गई मेरी साँसे
हो गई आँखे रुआंसे।

इतना दर्द
बिछडनेका हमदर्द
हवाएं तो चल रही है सर्द
पर मुझे नजर आ रहा है फर्क!

यह तो कह जाते
थोड़ा सा तो बतलाते
क्या मिला आपको हमें रुलाके?
आंसू रुके नहीं रोके!

मेरा कुसूर क्या था?
मैंने तो सिर्फ मुस्कुराया था
आपने ही हमें आगोश मे ले लिया था
कितना कितना मुझे सताया था।

मेरे पर मुसीबत के बादल छा गए हैं
मेरे मुख में कालिख पोत दी गई है
हमारे प्यार पर, घने बादल छा गए है
दुःख झेलने के सिवा अब और कोई चारा नहीं है।

काश! मैं ढिंढोरा पिट सकती
और सब को ये बता पाती
प्यार के बहाव को, काश रोके रहती
जीवन में हंसी की कमी, तो महसूस ना करती

अब तो पतझड़ ही पतझड़ है
रूखे बाग ओर वेरान पहाड़ है
हवाएं भी गर्मी का अनुभव कराती है
जीवन के बेरंगी खेल से, अवगत कराती है।

हसमुख अमथालाल मेहता

Tuesday, May 15, 2018
Topic(s) of this poem: poem
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अब तो पतझड़ ही पतझड़ है रूखे बाग ओर वेरान पहाड़ है हवाएं भी गर्मी का अनुभव कराती है जीवन के बेरंगी खेल से, अवगत कराती है। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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