बदलना पडेगा
शुक्रवार, १९ अक्टूबर २०१८
नहीं रहा वो जज्बा
और नाही रहा वो रूतबा
दिन भो वो नहीं रहे
अब वो कह रहे और हम सुन रहे।
हमारी चढ़ती के दिन गए
साथ साथ में मान-सम्मान भी कम हुए
लोगों का मिलना झुलना भी काम हुआ
प्यार तो कम, पर बुलाना भी कम हूआ।
खेर, कुदरत का यह नियम है
वो अपने रुख पर कायम है
दुनिया का भी यही दस्तूर है
उगते को नमस्कार करना और पूजना है।
हमें सब मालुम है
पर लाचार है
माली हालत हम बदल नहीं सकते
हवा के रुख का हम सामना नहीं कर सकते।
जीना पडेगा हमें बदलते समय के संग
भुलाना पडेगा हमारे दुःख का रंग
जैसा भी हो उसमे ढलना ही होगा
हमारा अपना दुखड़ा रोने से काम नहीं बनेगा।
हसमुख अमथालाल मेहता
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जीना पडेगा हमें बदलते समय के संग भुलाना पडेगा हमारे दुःख का रंग जैसा भी हो उसमे ढलना ही होगा हमारा अपना दुखड़ा रोने से काम नहीं बनेगा। हसमुख अमथालाल मेहता