बिगड़ी बनाई
मंगलवार, ४ दिसंबर २०१८
आ जा प्रभु, तुम आ जाओ
मन की तरस को छिपा जाओ
आँखे तरस गई, राह देखते देखते
सपने में भी आप ही दीखते।
तुम हो खेवैया
तुम ही खेलैया
घटघट में सब के बसिया
छबि तुम्हारी, मोहक रसिया।
आन पड़ी अब, मुश्किल की घडी
कैसे कहूं मै दिल को लगी?
संसार से भर गया, मन बेचारा
अब नहीं बचा, कोई चारा।
जब तक ना देखु प्रतिमा तुम्हारी
मन रहे बेचैन, देखनेहरी
दिखता नहीं और कोई किनारा
शरण में आया में प्रभु तुम्हारा।
ये दूनियादारी, मुझे रास नहीं आई
हर मोड़पर, मुझे खता दिलाई
फिर भी ना हारा, आस लगाईं
आपने मेरी बिगडी बनाई।
हसमुख मेहता
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ये दूनियादारी, मुझे रास नहीं आई हर मोड़पर, मुझे खता दिलाई फिर भी ना हारा, आस लगाईं आपने मेरी बिगडी बनाई। हसमुख मेहता