चाय की चुस्की
चाय ही जिंदगी है, चाय ही बंदगी है।
चाय मन की चाहत, चाय ही ताजगी है।
काली रजनी को, जगाये चाहे सूरज
मन को जगाती है, चाय की चुस्की ।
सुबह राम का नाम तो बाद में आय।
उठते ही सब माँगते, पीने को चाय ।
और देशों के बारे में नहीं कह सकता
भारत को जगाती है, चाय की चुस्की ।
जाड़े के मौसम में हो, ठण्ड कड़कती।
कड़क चाय की प्याली, गर्माहट देती।
ताजगी भर कर, कुछ राहत दे देती,
सुस्ती को भगाती है, चाय की चुस्की।
भोर होते, ननुआ की भट्टी जल जाती है।
अजोर होते ही वहां भीड़ जम जाती है।
देश के हालात पर, बहस छिड़ जाती है।
हाथों में अख़बार और चाय की चुस्की।
यहीं से होती शुरू, देश की राजनीति।
पक्ष, विपक्ष, बताते अपनी अपनी नीति ।
तर्क वितर्क करते, पार्टियों के समर्थक
गरमागरम बहस के साथ, चाय की चुस्की।
कभी कभी गर्माहट, बहुत बढ़ जाती है।
ननुआ के सिर पर, चिंता चढ़ जाती है।
सदन के सभापति सा मौन हो जाता;
बीच में पूछता, और? चाय की चुस्की?
हर सभा की कार्यवाही को देती ब्रेक।
सरकारी काम की गति कर देती तेज।
ग्राम सभा, विधान सभा, लोक सभा
हर सभा अधूरी बिना चाय की चुस्की।
आम आदमी के मुंह लगी, मुंह बोली है।
भजन, कीर्तन, यात्रा में हमजोली है।
श्रमिकों की थकान मिटा, स्फूर्ति देती,
कार्य पर रहती साथ, चाय की चुस्की।
कभी डील, कभी रिश्तो को फील कराती।
कभी अतिथि के स्वागत में जुट जाती।
कभी यादों में डूबी, तो कभी बिसराती,
कभी समय बिताती, चाय की चुस्की।
(C) एस० डी० तिवारी
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