छप्पर फाड़ के Chhappar Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

छप्पर फाड़ के Chhappar

छप्पर फाड़ के

Tuesday, February 6,2018
7: 29 PM

छप्पर फाड़ के

मत मांगो उपरवाले से
बस जागो आनेवाले खतरे से
अपने आप में चरित्र से ऊपर उठ जाओ
आने वाले कल को उजागर बनाओ।

जब आप मानते हो
किस्मत के सिद्धांत को!
फिर काहे को कोसते हो अपने आपको
दिन कभी ढल नहीं जाता रात को।

कभी किसी को मांगनेसे मिला है क्या?
यदि नहीं मिला तो फिर रोना क्या?
करो उपरवाले से एक ही विनती
तुम्हारी भी हो संतो में गिनती?

रुक ने से हो जाती है गति कम
फिर ना करना कोई गम
जो चल पड़ा वोही होगा कामयाब
बाकी सब रहेंगे असफल और नाकाम।

करो ऐसा प्रयास
कि मुंह से निकले अनायास
"तेरा भी कोई जवाब नहीं उपरवाले"
दे तो देता है "छप्पर फाड़के "

छप्पर फाड़ के Chhappar
Tuesday, February 6, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 06 February 2018

Sikha Pal Pal Bhut bahut sukriya 1 Manage Like · Reply · 8m

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 February 2018

करो ऐसा प्रयास कि मुंह से निकले अनायास तेरा भी कोई जवाब नहीं उपरवाले दे तो देता है छप्पर फाड़के

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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