चोट से
चोट चोट ही है
चाहे फूल से लगे
या शब्दो के बाण से
पर आदमी घायल हो जाता चोट से।
आगजरती भाषा हो
आँखों में अंगारे हो
मुँह गुस्से से लाल हो
शरीर कम्पकम्पी से बेहाल हो।
फूल दो मगर प्यार से
भले ही सादे हो देखने से
पर रंग आँखो को भाये ऐसा हो
मन को शांति दे ऐसा मोहक हो।
प्यार से दो शब्द कह दो
पशु को भी आप पूचकार दो
चाहत की जंग छिड़ जायेगी
आँखों में एक तरह की ताजगी आ जायेगी।
ये पलकों का प्यार है
जो छू जाता आरपार है
अपनी कहानी भीतर नहीं रखता
पर सबके कानों में कह जाता।
कर लो सत्कार अपने अंदाज से
जैसे सफर करने जा रहे जहाज से
सब यात्री होंगे आपके साथ
लेकिन आप ले जा रहे होंगे यादे प्राणनाथ।
कर लो सत्कार अपने अंदाज से जैसे सफर करने जा रहे जहाज से सब यात्री होंगे आपके साथ लेकिन आप ले जा रहे होंगे यादे प्राणनाथ।
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कर लो सत्कार अपने अंदाज से जैसे सफर करने जा रहे जहाज से सब यात्री होंगे आपके साथ लेकिन आप ले जा रहे होंगे यादे प्राणनाथ।