देशद्रोही Deshdrohi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

देशद्रोही Deshdrohi

देशद्रोही

ये ठग गठबंधन
देश का लुटा धन
फिर भी अपने को कहता है पिछड़ा
मर्सिडीज़ गाड़ी में घूमता।

अपने पास अरबों रुपियो की कमाई
ये सब कहाँ से आई?
क्यों ना न्यायालय इनपर कार्रवाई करता?
फिर से जेल में क्यों ना वापस भेज देता?

सब धन सरकारी कोष में जमा कराया जाय
सही जाँच होने के बाद ही फैसला किया जाय
तब तक अधिकार जनता का हो
इनके सब अधिकार स्थगित हो।

महा ठगबंधन में सब वो है
जिनके सरपर तलवार लटक रही है
एक या दुसरा धब्बा लोगो की नजर में आ चुका है
अब उन्हें उसमे से निकल ने का रास्ता निकालना है।

देश को खूब सत्तर सालो तक लुटा
फिर भी इनका दिल ना टूटा
अब देश के गद्दारो के साथ में बैठे है
इनके देश में जाकर प्रधानमंत्री को हटाने की बात करते है।

देश में जाली संगठन बना रखे है
जो बिना वजह बीच में कूद जाते है
उनकी वकालत करना और पैरवी करना मकसद है
ऐसे लोग हमारी संसद में बिराजमान है।

जितना हो सके इनको सलाखों के पीछे भेजो
देश के नागरिकों को सलामती दे दो
कोई निर्दोष जान ना गवाए
देशद्रोही तुरंत फांसी पर चढा दिया जाए।

देशद्रोही Deshdrohi
Wednesday, July 12, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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जितना हो सके इनको सलाखों के पीछे भेजो देश के नागरिकों को सलामती दे दो कोई निर्दोष जान ना गवाए देशद्रोही तुरंत फांसी पर चढा दिया जाए।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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