दिल बेरंग है Dil Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दिल बेरंग है Dil

दिल बेरंग है

जुदाई का गम अलग होता है
चेहरा हस्ता है पर मन रोता है
कितनी हलचल और कितना बोझ
झेलना पड़ता है हररोझ।

मन सद्दा प्रफुल्लित रखना पड़ता है
अपने आपको स्वच्छ और तरो ताजा महसूस करना पड़ता है
जवाबदारी का वहन मजबूत कन्धा चाहता है
अपने आपको भी कई बार भुलाना पड़ता है।

अकेले में मन कुछ परेशान रहता है
अपनों से दूर रेहनेका अफ़सोस करता है
क्यों मुझे ये वनवास उठाना पड रहा है?
बारबार उनकी याद में उदास सा हो जाता है।

ये चीज़ हैरान करने वाली है ं
मन की उपज मन में ही रेहने वाली है
दूर रहनेवाला भी परेशान और पास वाला भी
शब्द नहीं होते केहने के लिए वैसे रुआंसा हो जाता है कभी कभी दिल भी।

यह चीज़ सिर्फ महसूस होती है
और फट से मायूस कर देती है
दिल खोया खोया सा रहता है
गमगीन और जैसे दीन होने का आभास दिलाता है।

दूर प्रदेश के हाल अलग है
सामने हजार रंग है
फिर भी दिल बेरंग है
दिल सम्हाल के बैठा सबरंग है।

दिल बेरंग है Dil
Saturday, April 8, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 09 April 2017

welcoem manisha mehta Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 08 April 2017

दूर प्रदेश के हाल अलग है सामने हजार रंग है फिर भी दिल बेरंग है दिल सम्हाल के बैठा सबरंग है।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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