दिली माफ़ी चाहता Dili Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दिली माफ़ी चाहता Dili

दिली माफ़ी चाहता

क्यों याद करेंगे युवानी?
अब तो आ चुकी है हवा बर्फानी
सब कुछ हाथ से सरका जा रहा है
युवानी का लहजा भी दुःख दे रहा है।

बचपन में किया खूब शैतानी
माता-पिता की बढाई परेशानी
ना आया हाथ उनके, झेलने को सजा
मुझे बहुत आ रही थी मझा।

आज कोने में बैठ कोस रहा
अपने आप को कह रहा
क्यों दौड़ लगाईं फ़ालतू?
जैसे कुत्ता हो पालतू!

कुछ काम नहीं आनेवाला
सब यहाँ ही है रहने वाला
मुझे अब कोई परसंगी नहीं
बस सिर्फ बंदगी है करनी।

बुढ़ापा यदि इतना दुखदायी है
तो मुझे क्यों नहीं बतायी गई कहानी है?
में आज झेल रहा शर्मिंदगी गर्ता में डूबा जा रहां हूं
अपने किये का गम है फिर भी सब को याद जार रहा हु ।

पता नहीं मेरा अंतिम पड़ाव क्या होगा?
कुटुम्बी किस तरह से मेरेलों विदाय करेंगे?
फूल की अपेक्षा में नहीं करता
आज सब से में दिली माफ़ी चाहता।

यदि बुढ़ापा में अपना ही दर्शन है
तो समग्र विश्व को दिखाना है सुदर्शन
ये छलनी कर देगा पलभर में देखते देखते
बस रही सही कसर पुरो हो जाएगी चलते चलते।

दिली माफ़ी चाहता Dili
Friday, August 25, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 25 August 2017

में आज झेल रहा शर्मिंदगी गर्ता में डूबा जा रहां हूं अपने किये का गम है फिर भी सब को याद जार रहा हु । पता नहीं मेरा अंतिम पड़ाव क्या होगा? कुटुम्बी किस तरह से मेरेलों विदाय करेंगे? फूल की अपेक्षा में नहीं करता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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