दुनिया को तो Duniyaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दुनिया को तो Duniyaa

दुनिया को तो

दस्तुर है प्यार का
मकसद है जीने का
एक दूसरे पे मर मीटने का
जीवन के महिमा को समझने का।

ना ही नाक नक्श देखते है
और नाही शक्ल नीरखते है
बस परखते है उसके नयन को
पढ़ लेते है उसकी जबान को।

कितना कह देती हो!
थोड़े में अपने आप को सिमट लेते हो
में तो गुम हो जाता हूँ विशाल समंदर में
जैसे ही तुम समा जाती हो भीतर में।

मेरा दिल कुबूल करता है
अपने आप से सवाल करता है
उसी अलफ़ाज़ को समाया जाय
क्यों ना कल को आज ही खुशनुमा किया जाय?

जिंदगी पूरी पड़ी है बिताने को
समझाने और समझने को
में कैसे कह दू 'वो मै ही हूँ '?
प्रेम में सिमटा खुद ही हूँ।

ना रखूंगा कोई कसर दिखाने को
ना आने दूंगा कोई दिक्कत जुदा करने को
जीवन है दूसरे छोर पहुंचना ही है
अपनी किश्ती को बचाना ही है।

उठाओ अपने नयन और मुस्कुरा दो
हवा के रुख में थोडी सी नरमी को आने दो
फूलों को भी थोड़ा सा हॅसने और महकने दो
अरे भाई! दुनिया को तो पता पड़ने दो!

दुनिया को तो Duniyaa
Thursday, May 4, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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उठाओ अपने नयन और मुस्कुरा दो हवा के रुख में थोडी सी नरमी को आने दो फूलों को भी थोड़ा सा हॅसने और महकने दो अरे भाई! दुनिया को तो पता पड़ने दो!

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Aasha Sharma Awesome Hasmukh Mehta ji 1 hr · Like · 1 · Reply

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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