एकटक देखता
एक ही था सहारा मेरा
गगन कहो या आकाश सुनहरा
में देखता और हताश हो जाता
मेरी समझ में कुछ नहीं आता।
जब सब कुछ ठीक था
में मूक रहता था
कभी अभिमान मन में नहीं आने दिया
आकाश की गहराई को मन में उतार दिया।
जब चाँद और तारे समा सकते है
सूरज भी जब रौशनी फैला सकता है
तो में क्यों पंख फैला के उड़ नही सकता?
यह सोच के में अपने आप को रोक नहीं सकता।
मैंने ऊपर से धरती को भी देखा
निचे से भी उसका नजारा देखा
पर आज मेरी स्थिति दयनीय है
उड़ने के लिए बेताब पर निसहाय है।
दोनों पाँव रोगग्रस्त है
में त्राहित और त्रस्त हूँ
अब मेरा अस्तकाल बहुत नजदीक है
में फिर से आसमान को एकटक देखता हूँ।
समय से पहले के सम्हलना जरुरी है
जब जाना तय है तो अमीरी दिखाना भी जरुरी है
दिल के धनी रहो और किसी की परछाई बने रहो
कब आएगा अंत कौन जाने पर शांतचित होके रहो।
Aasha Sharma Bahut hi sunder Hasmukh Mehta Ji Unlike · Reply · 1 · Just now
पर आज मेरी स्थिति दयनीय है उड़ने के लिए बेताब पर निसहाय है।
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welcoem atul yadav Unlike · Reply · 1 · Just now