फल मिलेगा....Fal Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

फल मिलेगा....Fal

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फल मिलेगा
मगलवार, १३ नवम्बर २०१८

में तो प्यासा की प्यासा ही रह गया
नदी का बहता जल देखकर भी तरस गया
ये कौनसी क्षुधा थी जिसे में वंचित रह गया?
मन था व्याकुल और अचंबित ही रह गया।

"थोड़ा और, थोड़ा और" मांगता ही गया
अंदरूनी जिज्ञासा को बढ़ाता ही गया
जब पूरी नहीं हुई आशा तो निराश हो गया
अंदर ही अंदर दुखी होता गया।

जितनई आशा बढ़ाओ
उतनी ही मिलेगी निराशा और दुःख को पाओ
आशा होती तो है बलवान
पर सब नहीं हो जाते नसीबवान।

आस रखो तबतक जब चले आखरी सांस
कोशिश पूरी करो जब तक है साधन पास
कभी नहीं छोड़ना मंसूबा और साहस
एक दिन आपके दिल में नहीं होगी भड़ास

प्यास को सिमित रखना सीखो
अपने को बचाके रखो और आगे देखो
धीरज के फल को धीरे धीरे चखो
"फल कब मिलेगा"वो बात मैं में ही रखो।

हसमुख मेहता

फल मिलेगा....Fal
Tuesday, November 13, 2018
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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