फसल लहराएगी
सोमवार, २ जुलाई २०१८
बादल गरजे
बिजली चमके
अब आने को है
धरती की प्यास बुझने को है
बादल दौड़े
बीजली भी छोड़े
अपनी अपनी ममत को लिए
धरती को मिलने की लिए।
मिलन की आन पड़ी
आसान सी घडी
जैसे नैना लड़ पड़ी
कभी की नही धोखाधड़ी।
मंसूबा करना चाहा
पर सब हो गया स्वाहा
धरती ने सर बल पड गए
निराश हो कर आस को छोड़ दिए।
यही है प्रीत निराली
आँखों में ला दे पानी
मन बोले बरसो, चारो दिशा से
प्यास मिटा दो, खुले अम्बर से।
हरा हरा होगा मेरा बदन
नया रूप धरेगा मेरा तन
हल भी चलेंगे कलेवर को बदलेंगे
फसल लहराएगी और खेत सुहावने लगेंगे।
हसमुख अमथालाल मेहता
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हरा हरा होगा मेरा बदन नया रूप धरेगा मेरा तन हल भी चलेंगे कलेवर को बदलेंगे फसल लहराएगी और खेत सुहावने लगेंगे। हसमुख अमथालाल मेहता