गम दूर भाग जाता Gam Dur Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

गम दूर भाग जाता Gam Dur

गम दूर भाग जाता

गिरना, फिर उठना ओर काम करना
यही तो है, इसे कहते है आगे बढ़ना
जीना दुश्वार हो तो भी हंसी को कायम करना
सब के साथ हिलमिलकर रहना।

यदि बढ़ने की चाह नहीं है
तो रौनक भी जीने में नहीं है
हर चीज़ बेकार लगती है और मायूसी का आभास कराती है
सर शर्म से झुका रहता है और अपमानित होने का बहस कराती है।

कोई मदद को नहीं आता है तो मायूसी छा जाती है
जीवन के प्रति रूखापन और चेहरे पर मुर्दनी छा जाती है
'कोई हो तो अपना' ये चीज़ का आना पहली जरुरत हो जाती है
आदमी सोचता है 'आखिर यही तो रिश्ते की पहचान होती है'

गिरने पर यदि कोई मदद करता है तो आत्मविश्वास बढ़ता है
ग्लानि का पलायन होना ही मित्रता बढ़ाता है
सब के साथ रहने का मनसूबा पक्का हो जाता है
यदि समयपर कोई साथ नहीं देता है तो आदमी हककबक्का रह जाता है।

यदि आपने बबुल बोये है तो गुलाब की आशा मत रखे
सूरज की रौशनी में मनसा का पूरा होना मत सोचे
अपने ही करम अपनों से धोखा दे देते है
लोग भी कन्नी काटकर बीदा ले लेते है।

ऐसे में अपनी सोच को कायम करना है
सब से दोस्ती और अपने को साबित करना है
बाँट ने से गम दूर भाग जाता है
पानी छिड़कने से आग बुझ जाती है।

गम दूर भाग जाता Gam Dur
Tuesday, January 3, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 04 January 2017

Rekhraj Choyal Gca Thankes ji Unlike · Reply · 1 · 1 hr

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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