पेड़ एक निर्वाक प्रतीक्षालय है
मौन एक नाद है जिसके पीछे अनहद नदी बहती है
तुम्हारे कंठ का स्वर गांडीव से निकला वत्सदंत है
जो मृत्यु नहीं देता, जीवन के पार भी भटकन ही देता है
गोया जीवन कम है मेरे लिए जीवन की भटकन भी कम है
बाल दोमुँहे थे बातें भी दोमुँही
क्या देव क्या दानव मेरे इतिहास में एक मुँह से किसी का काम ही न चल पाया
सारे देव प्रेम करते थे प्रेम का एक भी देव नहीं
वासना का देव था जो अपनी देह ही न सँभाल पाया
अगर मैं हवा से तुम्हारी देह बनाकर तुम्हें चूमता हूँ बेतहाशा
तो यह मेरी परम्परा का सर्वश्रेष्ठ पालन है
मिथिहास एक अन्यमनस्क परिहास है
हर परिभाषा फिर भी एक नई आशा है
अल्प-विराम, अर्ध-विराम और तमाम विराम चिह्न जोड़ लिए
सुंदर वाक्य शब्दों से बनता है संकेतों से नहीं
मेरी गठरी में बहुत सितारे हैं
लेकिन आसमान की मिल्कियत परिंदों को कभी मिली नहीं
मुझे मत दोषो शब्द बनकर तुम्हें ही आना था
मेरी गठरी को खोल आसमान बन तन जाना था
मन पर कौमार्य की कोई झिल्ली नहीं होती
मन भी देव है एक से ज़्यादा मुँह वाला
हद है प्रेम हमेशा मुसीबत की तरह आया
कोई मुसीबत कभी प्रेम की तरह नहीं आई
किसी ने कहा यह गूँगे का गुड़ है
दरअसल यह मुहावरा ही अभिव्यक्ति के खि़लाफ़ सबसे गहरी साजि़श है
हाथ की रेखाओं पर कभी रेल चला दी
तो तय है सब आपस में टकराकर नष्ट हो जाएंगी
ऐसा सर्वनाश जंक्शन किसी नक़्शे में भी नहीं मिलेगा
अंत के अनेक विकल्प हैं
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