हर मंजिल
हमने गड़ाई आँखे कुछ पाने के लिए
वो तो न मिली देखने के लिए
फिर भी आस ना छोड़ी अमन चेन के लिए
आसमान मुझे खाली सा लगा उसी के लिए
धरती का छोर मुझे विशाल सा लगा
आसमान मुझे कुछ कम ही लगा
“मंजिल पाना है तो हमें यहाँ डटना होगा”
“जो होगा सामने उसी से मन मनाना होगा”
“पाना था मुखे मंजिल” पर वो याद नहीं
खड़ी थी वो बिलकुल पास पर इतना जल्द नहीं
मुझे पाना था सही मंजिल जो मेरी अभी तक थी ही नहीं
आज जब में नजदीक हूँ तो vo दिखती hi नहीं
लोग क्या क्या नहीं करते पाने के लिए?
कितने हथकंडे अपनाते है कुछ पाने के लिए
मुझे बेतहाशा इन्तेजार था मंजिल के लिए?
शायद अभी वो सपंना था पाने के लिए
मंजिल को पाना कठिन हो सकता है
उसको करीब लाना शायद एक सपना हो सकता है
पर हम कोशिश तो कर ही सकते है
अपने दिल की बात तो कर ही सकते है
वो दूर होते हुए भी पास सी लगी है
कठिन परिश्रम की आज मुझे लगनी लगी है
शायद पालूँ हर मंजिल कि तरह उसे भी
क्या मंजिल वोही होगी हर मंजिल की तरह?
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