हवा हवा Hava Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

हवा हवा Hava

हवा हवा

बदल गए हालात
नहीं रही वो आदत
पहले इज्जत से बुलाते थे
अपने पास बिठाके पूछते थे।

आज वो एहसास नहीं
किसी पे भरोसा नहीं
कब कोई इज्जत पे हाथ डाल दे
कमाई हुई साख राख में मिला दे।

आज ढाई अक्षर का कोई मतलब नहीं
'आती हो खंडाला ' का चलन बढ़ा यँही
ना किसी का डर और नाही घरवालों की परवाह
बस चल पड़े है उसी और जहाँ नहीं मिलती वाहवाह।

चेहरे पर सबके धुंध है
कोई अज्ञात भय जैसे अंध के पास है
ना देख सकता है ना बोलनेका साहस है
बस ना कहनेवाली सिर्फ अपनी सांस है।

जब जमाना बदला तो रीत भी बदल गयी
नयी चाल, नयी भात कपड़ो में आ गयी
अब एक हाथ में मोबाइल है तो दूसरे हाथे एक्टिवा
बस सुनाई पड़ता है ' हवा हवा '

हवा हवा Hava
Friday, July 14, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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बस ना कहनेवाली सिर्फ अपनी सांस है। जब जमाना बदला तो रीत भी बदल गयी नयी चाल, नयी भात कपड़ो में आ गयी अब एक हाथ में मोबाइल है तो दूसरे हाथे एक्टिवा बस सुनाई पड़ता है हवा हवा

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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