इंसान बुरा नही.. Insaan Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

इंसान बुरा नही.. Insaan

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इंसान बुरा नही
मंगलवार, १४ जुलाई २०२०

इंसान बुरा नहीं
उसकी सोच बुरी है
उसकी मनसा रहती अधूरी है
ओर कहलाती जाती मज़बूरी है।

जो रहेगा बुरा
उसका सपना रहेगा अधुरा
सालोंसाल धुमता रहेगा
अपने आपमें "आप" को मारता रहेगा।

क्यों हम इतने घिरे हुए है?
चिंताओं से घिरे हुए है
अपने आप को कलंकित मेहसुस कर रहे है
पर पा कुछ नहीं रहे है।

वो जीते जी मरे हुए है
अपने आप को मार रहे है
जैसा भी मौका चाहते है
नहीं मिलता तो तरसते रहते है।

समाज में उनकी कोई पूछ नही होती
मन में उनको हीनता की प्रतीति होती
किसी से खुलेआम आँख नहीं मिला सकते
अंधरे में बैठकर रोते बिलखते।

ऐसे आदमी जीवन के मूल्यों को नहीं समझते
दूसरों की तकलीफें देखकर खुश होते
कोशिश करेने के बावजूद भी नहीं सम्हाल पाते
अपने हाल हवालपर मायूस हो जाते।

हसमुख मेहता

इंसान बुरा नही.. Insaan
Tuesday, July 14, 2020
Topic(s) of this poem: poem
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ऐसे आदमी जीवन के मूल्यों को नहीं समझते दूसरों की तकलीफें देखकर खुश होते कोशिश करेने के बावजूद भी नहीं सम्हाल पाते अपने हाल हवालपर मायूस हो जाते। हसमुख मेहता Hasmukh Amathalal

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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