इतने सस्ते नहीं Itne Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

इतने सस्ते नहीं Itne

इतने सस्ते नहीं

ये है शहर नवाबी
लोग भी इसके अमन पसंद और गुलाबी
अपमी तेहजीब से सारे देश में परिचित
'पहले आप, पहले आप' कहके करते है उचित।

इसे उल्टा प्रदेश भी कहते है
क्योंकि इनकी सोच उलटी रहती है
नक़ल करने में माहिर
बीना मेहनत मिल जाए तो ठीक बाकी उस्तादी में जगजाहिर।

ये प्रदेश कभी नहीं सुधर सकता
पड़ोस में है बिहार जिनके लोग पान थूकता
अपहरण का उधोग यहाँ बहुत फलफुला है
दारुकी लतवाले और नशेडियोकि बोलबाला है।

हमेशा उलटा सोचनेवाले
पर मेह्नत करनेवाले
बोली में मिठास
हँसते हँसते निकाल दे भड़ास।

दोनों प्रदेशोका विकास नहीं
पूरा खा जाते है विकास का धन यही
एक नेता पूरा गाय का चारा ही खा गया
उसकी अनपढ़ बीबी ने सब से जमीं ही लिखवा लिया।

उसकी पढ़ी लिखी लड़की ने हजारो करोड़ की मिलकत डकार ली
सरकारी घरो में रहना और प्रदेश की बदहाली कर ली
इनके मातधिकार छीनकर पूरी मिलकत जप्त कर लेनी चाहिए
इनका रहना दूसरे राज्य में करके शांति बहाल करना चाहिए।

हमारे संविधान में मूल; बदलाव जरुरी है
देशद्रोहोयो को देहांतदण्ड और कालापानी का कारावास जरुरी है
कश्मीर में हर भारतवासी को बसने और व्यापार करने देना चाहिए
यदि उनका अधिकार है तो हर भारतीय को भी होना चहिए।

आओ हम ले प्रण की देश के लिए शहादत को मंजूर करेंगे
विघटनकारियों को कोई सवलत नहीं देंगे और कालापानी भेजेंगे
अब कोई खातिरदारी नहीं पर गोली देंगे

इतने सस्ते नहीं Itne
Sunday, June 25, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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welcome bhanu bhaa sunny Like · Reply · 1 · Just now Edit

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welcome kavita patel Like · Reply · 1 · Just now

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आओ हम ले प्रण की देश के लिए शहादत को मंजूर करेंगे विघटनकारियों को कोई सवलत नहीं देंगे और कालापानी भेजेंगे अब कोई खातिरदारी नहीं पर गोली देंगे

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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