जाना है सबने Jaanaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जाना है सबने Jaanaa

जाना है सबने

उड़ान भरने
पर कैसे?
बेमौत मरकर
या शान्ति से जी कर।

जितने दिन मिले है
उनको प्यार से जीने है
उसके पाँव तले यदि आदेश हुआ
तो समझो की आपका भाग्योदय हुआ।

नहीं समझा है आजतक
जीवन से मृत्यु तक
कहाँ रुकेगा काफिला?
किसको कह पाओगे पानी पिला?
हम बढ़ रहे है
विनाश क़ी और कह रहे है
'सत्यम वद ' और कम हो मद
सब को चाहिए मदद।

हम नहीं समझ सके है 'जीवन '
नहीं कोई ला सके प्राण ओर कर सकता तन को 'सजीवन'
ज्यादा नहीं कुछ ही सांस मिली है
मानो संसार में एक बहार खिली है।

हम नहीं संत
और सोचते है कैसे होगा अंत?
संसारी है और संसार ही हमारा साधन
जरुरत होती है यहां मन का समाधान।

मेरी करनी और कथनी एक हो
स्वभाव से मेरा पूरा मेल हो
किसी के साथ कोई ना खेल हो
बस आशा यही सब से सुमेल हो।

मेरा जीना सार्थक
सब होंगे समर्थक़
अंत पर नही है क़ोई रोक
फिर क्यों करे हर कोई शोक?

जाना  है सबने Jaanaa
Saturday, August 19, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 19 August 2017

स्वभाव से मेरा पूरा मेल हो किसी के साथ कोई ना खेल हो बस आशा यही सब से सुमेल हो। मेरा जीना सार्थक सब होंगे समर्थक़ अंत पर नही है क़ोई रोक फिर क्यों करे हर कोई शोक?

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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