जय सियाराम, , Jai Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जय सियाराम, , Jai

Rating: 5.0

Tuesday, November 6,2018
6: 55 AM

जय सियाराम
मंगलवार, ६ नवंबर २०१८

बोल मनवा जय सियाराम
तेरे दुःख दूर करेंगे राजाराम
मर्यादा परुषोत्तम नाम अति उत्तम
गुणगान करना उनका महत्तम।

पिता के खातिर छोड़ दिया राज
त्याग दिए अपने राजपाट
चल पड़े वनवास प्रण केर
सब थे हाजिर रोए पूरा नगर।

कहाँ मिलोगे प्रभु में दर्दर भटकूं
आँखे खुली रहे ना मारु मटकु
दिल में बसों प्रभु चित ना धरो
अवगुण मेरे जड़मूल से हरो

आज भी हो प्रभु तुम प्रासंगिक
नहीं होता कुछ भी यूँ ही आकस्मिक
सच्चे दिल से करूँ में अपनी प्रार्थना
विनती सुनकर दरगुजर करना।

आप ने कइयों को उगारे
कइयों के जीवन तारे
मेरी सुनलो प्रभु एक ही विनती
मेरे आँखे देखने को तरसती।

किश्ती मेरी मझधार डोले
आप ही हो प्रभु मेरे रखवाले
में पापी किस मुंह से बोलू
आप ही हो प्रभु मे तो श्रद्धालु।

हसमुख मेहता

जय सियाराम, , Jai
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 05 November 2018

किश्ती मेरी मझधार डोले आप ही हो प्रभु मेरे रखवाले में पापी किस मुंह से बोलू आप ही हो प्रभु मे तो श्रद्धालु। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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