जीना दूभर
गुरूवार, २२ नवंबर २०१८
मेरा जीना दूभर हो गया
जब मुझे ऐसा महसूस हुआ
अपने निजी लोग जब छल करने लगे
अपनों से ही भेदभाव रखने लगे.
ऐसा कई बार हुआ है
जब मुझे बहुत बुरा लगा है
बातबात में झगड़ा करना
एक दूसरे की उन्नति पर इर्षा करना।
एक बार मन में कोई खटका आ जाय
उसको भुलाना बड़ा मुश्किल हो जाय
मन से निकालना असंभव साहू जाता
मन में दुर्भावना की जड़े मजबूत करते जाता।
इंसान यहां मार खा जा है
अपने पूराने दिन भूल जाता है
गरीबी और यातना से भरे दिन भुला डेता है
औरदूसरों को फिर वो ही यातनाए देता है
हम कोई सिख नहीं लेते
अपनी याददास्त को कमजोर कर देते
जब अपने पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ता
तो अपने को निसहाय समझकर रो पड़ता।
हसमुख मेहता
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हम कोई सिख नहीं लेते अपनी याददास्त को कमजोर कर देते जब अपने पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ता तो अपने को निसहाय समझकर रो पड़ता। हसमुख मेहता