जीने की चाह बढ़ेगी Jine Ki Chah Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जीने की चाह बढ़ेगी Jine Ki Chah

जीने की चाह बढ़ेगी

कौन मना करता है तुझे पीने के लिए
कौन तेरा हाथ पकड़ लेता है मना करने के लिए
नाश करना है तो कर, कोई मनाही नहीं
पर उसमे गोताही कभी बरतना नहीं।

नशेड़ी ना बन और अपनी इज्जत बरकरार रख
जीवन को बेहतर बनाने का करार कर
रख अपना प्रस्ताव उसके सामने
फिर देख कैसा महसूस होता है दीवाने?

यारो जिस्म से ही प्यार मिलता
तो इंसान मयखाने में ही दिखता
सारा दिन नशे में डूबा रहता
और सूरज को ढलते ही देखता।

यदि चाँद जैसी महबूबा चाहिए
तो जीवन में फलसफा चाहिए
उसके हुस्न को आँखों से पीना सीख
लोग भी ना सुन पाए तेरी छोटी सी चीख।

ना मन कभी खालीपन का अनुभव करेगा
ओर नाही अवढव महसूस करेगा
जीवन में असीम प्रेम का एह्साह होगा
जीने की चाह बढ़ेगी ओर उत्साह का आगाह होगा

जीने की चाह बढ़ेगी Jine Ki Chah
Friday, December 9, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 09 December 2016

ना मन कभी खालीपन का अनुभव करेगा ओर नाही अवढव महसूस करेगा जीवन में असीम प्रेम का एह्साह होगा जीने की चाह बढ़ेगी ओर उत्साह का आगाह होगा

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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