जितना नहीं थके जीवनभर Jitnaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जितना नहीं थके जीवनभर Jitnaa

जितना नहीं थके जीवनभर

Wednesday, January 10,2018
8: 45 AM

जितना नहीं थके जीवनभर


थकान तो महसूस होती ही है
उसके बाद सोनो तो होता ही है
यहक्रम रोजाना का है
जागना, काम करना और फिर सो जाना है।

श्रम करके कमाना बहुत अच्छी बात है
उस परिश्रम से सेहत भी अच्छी रहती है
दिल में एक असीम प्रेम उमड़ता है
भावनाओं से भरा प्रेम भी जताता है।

उद्यमीआदमी कभी नहीं थकता
थोडा सा रूककर फिर चलता
चलते चलते मुड़कर भी देख लेता
कुछ सुधार करके फिर अपनी मंझिल की और बढ़ जाता।

जब तक उसके दल में उमंग है
आगे बढ़ने की चाह है
तब तक मानो उसके पास दैवी वरदान है
जीवन का उसे अभयदान है।

जिस दिन समझो की आपके मन में घृणा का स्थापन हुआ
आपका दिल हराम की कमाई के किये तड़पता हुआ
समझो आपकी नैया डूबने वाली है
आपकी हराम की कमाई साथ में ले जाने वाली है।

आपको नए सिरे से झंझोड़ने वाली है
हुक्कापानी बंध कराने वाली है
आप थकान से चूर होकर लाचार होने वाले हो
जितना नहीं थके जीवनभर वो एक क्षण में मेंहसुस करने वाले हो।

जितना नहीं थके जीवनभर Jitnaa
Tuesday, January 9, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 09 January 2018

आपको नए सिरे से झंझोड़ने वाली है हुक्कापानी बंध कराने वाली है आप थकान से चूर होकर लाचार होने वाले हो जितना नहीं थके जीवनभर वो एक क्षण में मेंहसुस करने वाले हो।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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