ऐ जिंदगी तु ही बता मेको मैने क्या-क्या नही देखा
हमने तो तेरे हर एक रुप रंग को देखा
दुरियों मे जनदिकी और नजदिकी मे दुरियों को देखा
वफा मे बेवफा और बेवफाई मे वफा को देखा
रात मे दिन और दिन मे रात को देखा
सावन को सुखते और फाल्गुन को गरजते हुए देखा।
ऐ जिंदगी तु ही बता मेको मैने क्या-क्या नही देखा
गुंगी जनता को देखा और बहरी सत्ता को देखा
ईलाज का लाईलाज और लाईलाज को ईलाज होते देखा
लुट ग़ए वो लोग जिनको मैने सहजते हुए देखा
सहज गए वो लोग जिनको मैने बिखरते हुए देखा।
ऐ जिंदगी तु ही बता मेको मैने क्या-क्या नही देखा
दोस्ती मे मुनाफिक मुखुलकत को देखा
इंसान अपनी वसूल, जमीर दाव पे लगा दिये
मैने ऐसे खारिदार को देखा
इंसान ही इंसान का ना रहा
मैने इस कदर इंसानियत को मरते हुए देखा
मत पूछ मेरे यार मैने क्या-क्या नही देखा।
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