काल अपना जाल, , , Kaal Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

काल अपना जाल, , , Kaal

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काल अपना जाल
Thursday, May 3,2018
3: 30 PM

समय तो सरक रहा था
मैं भी आपा खो रहा था
ऐसा क्योंहो रहा है आजकल?
सब कुछ क्यों हो गया एक पल?

बचपन गया, जवानी आ गई
सब यादें, सिर्फ जबानी रह गई
सिर्फ एक बात की याद दिलाती रही!
ना में किसी के साथ था, पर सिर्फ निशानी बाकी रही

उर्म्र भी ढलती रही
टाँगे भी जवाब देती रही
बस वो ही मेरे साथ रही
नहीं दे रहा था साथ अपना देह, फिर भी साथ निभाती रही

किया था वादा
साथ निभाने को सदा
मै भी तो था अकड़ू और आमादा
ओर ना करता कभी भी निंदा।

मेरे गुलशन में कांटे नही थे
बस फूल ही फूल थे
खुश्बू अपनो सुगंध बिखेर रही थी
मेरी आँखे सिर्फ देखती ओर सुंगती रहती।

"ना बिछड़ना मुझ से पहले " मैंने कह दिया
यह कहते कहते मैं रो दिया
काल अपना जाल बिछा रहा
में स्वगत कुछ न कुछ बोलता रहा

काल अपना जाल, , , Kaal
Thursday, May 3, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

ना बिछड़ना मुझ से पहले मैंने कह दिया यह कहते कहते मैं रो दिया काल अपना जाल बिछा रहा में स्वगत कुछ न कुछ बोलता रहा

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welcome manisha mehta 1 Manage Like · Reply · 1m

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welcome welcome impossible possible 1 Manage Like · Reply · 1m 1 Manage Like · Reply · 1m

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welcome Rijuta Gupta · 16 mutual friends Thank you Sir for sharing and adding value. 1 Manage Like · Reply · 1h

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Mayank Arya Mayank Arya · Friends with Samrudhi Dash and 1 other कृतज्ञ हो गया में और यह चित्र इन पंक्तियों से। आभार सर ।। 1 Manage Like · Reply · See Translation · 2h

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welcome welcome rituja gupta 1 Manage Like · Reply · 1m

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welcome mayank arya 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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