कालचक्र...Kaalchakra Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कालचक्र...Kaalchakra

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कालचक्र
बुधवार, १७थ अक्टूबर २०१८

मुझे नहीं था मालुम
कब होगा कुदरत का रुख प्रतिकूल
मैं हो उठा व्याकुल
नजरे भी अब नहीं रही चंचल।

पता नहीं आजकल क्यों दाव पड रहेव् है उलटे?
में सदैव सोच रहा था कब दिन पलटेंगे
और र फिर उठ जाती थी एक चीस
दिल को चुभ जाती थी एक टीस।

कुदरतदुसरा नाम दिया मैंने भस्मासुर
में भी रहा हमेशा मगरूर
नहीं समझा क्या था जरूर
बस यही समझा की में था बेकसूर।

मुझे मालुम था क्या है ये कालचक्र?
पर जब आपकी दशा हो वक्र
नहीं मदद करता कोइ चक्र
अपने को नहीं होना चाहिए कोई शक।

प्रकृति का ये है नियम
नहीं रह सकती कोई चीज़ कायम
मेरी ग्रहदशा भी बदलेगी
नयी दिशा जरूर रंग लाएगी।

हसमुख अमथालाल मेहता

कालचक्र...Kaalchakra
Wednesday, October 17, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 17 October 2018

welcoem maria cermiara 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 17 October 2018

प्रकृति का ये है नियम नहीं रह सकती कोई चीज़ कायम मेरी ग्रहदशा भी बदलेगी नयी दिशा जरूर रंग लाएगी। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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