काना, काना दिनभर
हमने तो कभी से माना
तुम ही हो हमारा काना
बस बंसी के बजइया
हमारे ब्रज के चहेता कनैया।
सारे दिन बीन बजाते हो
सबको धुनपर नचाते हो
पता नहीं उसमे क्या जादू है?
सरे व्रजवासी से नशा नाश बेकाबू है।
हम ने तो चेन खोया है
पर यशोदा के लाल को पाया है
न देखो दिनभर तो होश उड़ जाते है
मन में हजार बातें ले आते है।
राधे के बिन तुम हो आधे
बांसुरी के धुनपर हम खूब नाचे
बस 'राधेय राधेय' पुकारे दिल से
मन करता रहता है पुकारे बार बार ओर फिर से।
ना हमें सीखना है बांसूरी के संग
बस मिट जाना है भर के रंग
अब तो आन मीलो सब से
मन ही मन में मिला लो प्रेम से।
अब ना रह पाएंगे बिन बंसी की धुन के
बस चारा भी नहीं कोई और बिन सुन ले
हम तो बस एक ही नाम लेते रहेंगे
'काना, काना दिनभर जपते रहेंगे।
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