कदर करो... Kadar Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कदर करो... Kadar

Rating: 5.0

कदर करो
शनिवार, ९ मार्च २०१९

हम नाही है मौत के सौदागर
और नाही है जीवन के जादूगर
हम तो है शांति के दूत
ना कहे किसीको सूत या असुत।

जीवन है अनमोल
ना करे कोई इसका तोल
तवंगर हो या कोई गरीब
बस हमें रहना है उसके करीब।

ना हमें माँगा ना किसी ने दिया
जब मिला तो उसका मूल खो दिया
कर दिया जात, पात का बंधन
हमने कभी नहीं सोचा क्या होता मानव धन?

हां पछताओ और करो मंथन
स्वर्ग से मिला है हमको पवित्र बंधन
ना रखना कोई गिला, शिकवा
जिसे दूषित हो जाए स्वच्छ हवा।

इंसानो की पहचान रखो
मानवता की कदर करो
रहना है हमें भाईचारा से
करना है किनारा दूरियां से।

हसमुख मेहता

कदर करो... Kadar
Saturday, March 9, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 09 March 2019

इंसानो की पहचान रखो मानवता की कदर करो रहना है हमें भाईचारा से करना है किनारा दूरियां से। हसमुख मेहता

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success