Kah Mukari (Hindi) कह मुकरी Poem by S.D. TIWARI

Kah Mukari (Hindi) कह मुकरी

कह मुकरी

कमर से लिपटी थी मैं उसमें,
ऊपर से सिमटी थी मैं उसमें,
सुंदरता पर गयी मैं वारी;
क्या सखि साजन, नहिं सखि साडी।

गले में वो पड़ कर लटका,
देख देख मेरा मन महका,
प्यार से बहुत, गले में डाला;
क्या सखि साजन, नहिं सखि माला।

लटक जाता है चुपचाप,
भेद ना माने दिन या रात,
कहीं गये तो जरूर डाला;
क्या सखि साजन, नहिं सखि ताला।

सदा ही वह, आँखों पे रहता,
दूर भी कर दूँ कुछ ना कहता,
साथ चाहती हूँ मैं बेशक;
क्या सखि साजन, नहिं सखि ऐनक।

- एस० डी० तिवारी

Monday, January 16, 2017
Topic(s) of this poem: hindi,metaphor
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