Kanoon Ki Kitab कानून की किताब Poem by S.D. TIWARI

Kanoon Ki Kitab कानून की किताब

कानून की सबके लिए, सजा की एक किताब
पर प्रभावी लोगों का, होता अलग हिसाब
होता अलग हिसाब, चलता केस दसियों वर्ष
रहें सजा से मुक्त, निकले बिन किसी निष्कर्ष
निर्धन, निरपराध भी, सुखाता जेल में खून
तब कहीं वर्षों बाद, निर्दोष कहे कानून

Tuesday, June 2, 2015
Topic(s) of this poem: society
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