करीबी से Karibi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

करीबी से Karibi

करीबी से

चाहना
है ये तमन्ना
चाहे तुम करो मना
में हमेशा रहूंगा दीवाना।

में भोगी नहीं
रस का भूखा नहीं
चाहत है मेरी भूख
वो सदा देती है सुख।

मेने हरदम चाहा
और चाही दुआ
ना कोई हरकत ऐसी हो
जो दिल को ठेस पहुंचानेवाली हो।

अरमान मेरे ऊँचे है
पर पाँव नीचे है
हर कोई मुझसे पूछे है
क्यों नवजवान! ये मूछ ऊँचे है।

ये मेरा जीवन है
मैंने उसे सजीवन रखा है
मैंने सींचा है अपने मनसूबे से
और देखा है करीबी से।

करीबी से Karibi
Saturday, September 30, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 30 September 2017

क्यों नवजवान! ये मूछ ऊँचे है। ये मेरा जीवन है मैंने उसे सजीवन रखा है मैंने सींचा है अपने मनसूबे से और देखा है करीबी से।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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