कौन जानता है Kaun Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कौन जानता है Kaun

कौन जानता है

बीता हुआ कुछ नहीं लोटता
सिर्फ चोट पहुंचाता
बस याद बनके रह जाता
फिर एकदम से रुलाता।

वापस क्यों बुलाते हो?
वो पल के लिए क्यों दुखी होते हो?
वो तो एक सुखद सपना था
वो ना ही कभी अपना था।

गरीबी की अपना आलम था
महोब्बत का मौसम था
सब मिलबांट के खाते थे
कभी किसी को नहीं रुलाते थे।

वो दो चार आनी के लिए झगड़ना
फिर हँसके सब ठीकठाक करना
एक ही थाली में मिलकर खाना
फिर ठहाके मारके हंसना।

आज सब कुछ है पर वो नहीं
जो था वो नजर के सामने आता नहीं
कोशिश बहुत करते है पर आशा असफल हो जाती
बहुत मनाते फिर भी सामने नहीं आती।

नहीं आनेवाला लौटके गुजरा पल
हम चल बसेंगे कल
आजका रैनबसेरा ही होगा अपने पास
कौन जानता है कब छूटेगी सांस।

कौन जानता है Kaun
Friday, July 21, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

नहीं आनेवाला लौटके गुजरा पल हम चल बसेंगे कल आजका रैनबसेरा ही होगा अपने पास कौन जानता है कब छूटेगी सांस।

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नहीं आनेवाला लौटके गुजरा पल हम चल बसेंगे कल आजका रैनबसेरा ही होगा अपने पास कौन जानता है कब छूटेगी सांस।

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Imelda Monserrat Masacupan 6 mutual friends Like Like st now

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welcoem Atul P. Soni 20 mutual friends Like · Reply · 1 · 1 hr

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welcome Radhey Shyam Varshney 24 mutual friends Like · Reply · 1 · 1 hr Manage

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a Nice ink Hasmukh Mehta ji Like Like Love Haha Wow Sad Angry · Reply · 1 · 4 hrs

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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