ख़तरा
बुधवार, ११ जुलाई २०१८
ये ऊँची उठती लहरें
मुस्कुरा देती सब चेहरे
चेहरे पर कोई शिकन नहीं
बस खुशियां ही खुशियां यही।
सागर का महिमा ही अलग है
उसकी गहराई अथाग है
उसके तल तक पहुंचना मुश्किल है
कितनी सम्पदा चल है और कितनी अचल हैं।
इसकी दुनिया ही अलग है
बड़े जीव ओर छोटे जीव यहाँ बसते है
एक दूसरे से पेट भर लेते है
भगवान् की करामत का अनूठा उदाहरण है
इसकी लहरों पर तैरना का दिल करता है
मन करता है की कहीं दूर चला जाए
सागरखेड़ु का यहीं साम्राज्य है
वो परवा ना करते उसकी सतह पर नौका ले जाते है।
धरती और सागर हमारे आदर्ष
हम स्वीकार करते है सहर्ष
इनके बिना हमारा अस्तित्व नहीं
हमने मिल जाना पंचतत्व में यही।
इसी सम्पदा का हम रक्षण करे
उसमे कूड़ा कचरा और रसायन ना छोड़े
कितने ही जीव मारे जाएंगे
हमारे अस्तित्व के लिए खतरा बन जाएंगे।
हसमुख अमथालाल मेहता
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इसी सम्पदा का हम रक्षण करे उसमे कूड़ा कचरा और रसायन ना छोड़े कितने ही जीव मारे जाएंगे हमारे अस्तित्व के लिए खतरा बन जाएंगे। हसमुख अमथालाल मेहता