किनारे पड गया बेचारा Kinaare Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

किनारे पड गया बेचारा Kinaare

किनारे पड गया बेचारा

सबकी रोजी रोटी बंध है
सब ऊपर की कमाई के अंध है
पूरा खानदान इसमें लगा हुआ है
सब लो चारा खिला रखा है।

राजीव गाँधी ने एक बार कहा
मेरा सब फंड हो जाता स्वाहा
१०० रुपये भेजो तो [पहूँचता दस रुपया
कोई बताये इसका राज कृपया।

योगी जी को क्या ले जाना है?
सब ने ये तथ्य जाना है
सब जगह आग लगा रखी है इन्होने
गरीब और पीस रहे है गरीबी में।

सब को भरपेट खाना है
सरकार का खजाना साफ़ करना है
वरना पूरी धुरा तो उनके के हाथ में थी?
लोगों की हालत बहुत ही बुरी थी।

सब खेल एक ही रात में ख़त्म हुआ
पुराने अयोग्य सल्तनत का खात्मा हुआ
कोई इधर गिरा तो कोई उधर
सब हो गए एक ही रात में बेघर।

मंदिर भी बनेगा
और मुसलमान भी राजी होगा
उसको इबादत के लिए भी स्थान मिलेगा
सब जगह सौहार्द का वातावरण बनेगा।

इसी कारण से सब है परेशान
अब उनका काम हो गया असंभव और हो गया नुक्सान
अब नहीं दिखता कोई किनारा
केहते है किस के किनारे पड गया बेचारा?

किनारे पड गया बेचारा  Kinaare
Friday, August 18, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 18 August 2017

welcoem sunil kumar

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Mehta Hasmukh Amathalal 18 August 2017

बादत के लिए भी स्थान मिलेगा सब जगह सौहार्द का वातावरण बनेगा। इसी कारण से सब है परेशान अब उनका काम हो गया असंभव और हो गया नुक्सान अब नहीं दिखता कोई किनारा केहते है किस के किनारे पड गया बेचारा?

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Mehta Hasmukh Amathalal 18 August 2017

नेगा। इसी कारण से सब है परेशान अब उनका काम हो गया असंभव और हो गया नुक्सान अब नहीं दिखता कोई किनारा केहते है किस के किनारे पड गया बेचारा?

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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