कुदरत की देन
शुक्रवार, २ नवम्बर २०१८
मैं नहीं जानता,
लिखने का बल मुझे कहाँ से मिलता?
में घर में सदा लिखते रहता
अपनी लेखनकला को चमकाए रखता।
यह कुदरत की देन है
जो आपने प्रेमधुरा के रूप में पायी है
कवी कालिदास कला को पाकर धन्य हो गए
अपनी काव्य कुशलता से नाम अमर कर गए।
यही है कवी की प्रकृति
उसके मने नहीं होती कोई आकृति
बस विचारों की श्रृंखला चलती रहती
गंगा के पावन जल की तरह बहती रहती।
ना धर्म, और नाही कोई रंग की श्रद्धा
नाहीमन में भेद और नाही कोई दुविधा
हर मोड़पर आपके विचार रहते प्रगतिशील
आपके विचारों का सामंजस्य रहता गतिशील।
कवी को कोई नहीं होता बंधन
उसके पास दिव्यदृस्टि होती जैसे पास होती अंधजन
वो देख सकता मनुष्य का उद्धार
दृष्टिपटल के खुल जाते हमेशा द्वार।
कवी रहता हमेशा निर्धन
पर पा जाता लोगों का प्यार व् सन्मान
बस यही होती उसकी पहचान
उसका एक ही ध्यान, बस मानव कल्याण।
हसमुख अमथालाल मेहता
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कवी रहता हमेशा निर्धन पर पा जाता लोगों का प्यार व् सन्मान बस यही होती उसकी पहचान उसका एक ही ध्यान, बस मानव कल्याण। हसमुख अमथालाल मेहता