क्यों न गए थे थम
प्यार के वो चार पल जब मिले थे हम
क्यों न गये थे थम
चाँद तारों के आगे खाए जो कसम
संग में रहने की मिल जुल जनम जनम
हम दोनों ने सनम
क्यों न गये थे थम
चुपके से बहारें आने लगी थी
कलियाँ चमन की मुस्कराने लगी थी
पड़ गये कितने कम
क्यों न गये थे थम
पाने लगी थी जिंदगी नया रंग भी
गाने लगे थे झूम कर के विहंग भी
खुशियों के परचम
क्यों न गये थे थम
एस० डी० तिवारी
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