हे मेरे प्राणप्रियतम, प्रिय प्राण! L Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हे मेरे प्राणप्रियतम, प्रिय प्राण! L

हे मेरे प्राणप्रियतम, प्रिय प्राण!
हो तुम, कृपानुग्रहकारी महान।

तूने किये मुझपर अनन्त उपकार,
दे दिया पुनः जीवन उपहार,
अब करना, तुम ही सँभाल-सँवार,
तेरे हाथ में नौका-पतवार।

रखना मेरा मन अपने श्रीचरण,
रहें शुद्ध सकल अन्त: करण,
जब तू ही बसता सबके मन,
तब क्यों न रह सकता शुद्ध-सत्व तन-मन;
जब तू ही सव^त्र विराजमान,
परम शुद्ध-सत्व देदीप्यमान,
तब हो दर्शन केवल शुद्ध -सत्व,
दर्शन होते रहते परम सत्य,
वाणी बसें केवल शुद्ध स्वरूप,
मम वचन हों नि: सृत परम दिव्यमय रुप।

मेरे हृदय बसे तेरा ही ध्यान,
तू ही समाये रहे मुझमें, मेरे प्राण!
अन्त: करण तू ही रहे विराजमान,
मेरे सु-मन करें तेरे पद-त्राण,
उर-पटल बना रहे तेरा मँदिर,
लहराता रहे, तेरे प्यार का समुँदर।

मेरे कर्म बनते रहे तेरी पूजा,
वासना हृदय-भाव न दूजा,
सकल कर्म हो तुझको समर्पण,
मेरा जीवन रहे तुझको अर्पण।

Wednesday, May 2, 2018
Topic(s) of this poem: love
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