हे माते मेरी! कृपा कीजिए, निज परिकर सचिव L Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हे माते मेरी! कृपा कीजिए, निज परिकर सचिव L

हे माते मेरी! कृपा कीजिए, निज परिकर सचिव सँग कीजिए निवास।
सकल सुख सँपदा सहित कीजिए आप, मेरे सदन वास।।
सकल कामनाओं की हो सिद्धि, मेरा सव^दा हो मँगल।
आपकी कृपा से प्राप्त करें सब, "नवीन"जीवन बने सफल।

Wednesday, May 2, 2018
Topic(s) of this poem: love
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