लाजवाब बहाना Lajawab Bahana Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

लाजवाब बहाना Lajawab Bahana

लाजवाब बहाना

मेरा दिल चंचल हो उठता है
मेरी हर ख़ुशी के लिए उसका दिल मचलता है
यहाँ तक की वो कसम भी खा लेती है
'खा ले वरना तेरी माँ की कसम'कहकर मनमानी करती है।

तू क्या करेगी ससुराल जाकर?
मेरा नाम क रोशन करेगी बारबार
'मम्मी ने क्या सीखाया है' आरोप लगेंगे तुझपर
तेरी हर चीज़ रहेगी ताकपर।

वो हरदम मेरी फ़िक्र करती रहती है
कभी हंस पड़ती है तो कभी घुमसम सी रहती है
मानो उसका जीवन मेरे इर्दगिर्द घूमता रहता है
मुझे देखने के बाद ही हंसता रहता है।

बारबार सामने आ जाती है
'ये खाले, ये खाले' कहकर रुआंसी हो जाती है
मेभी उसकी बातों में आ जाती हूँ
और फिर में खाने लग जाती हूँ।

में उसकी तारीफ नहीं करती
और बारबार 'उफ़ उफ़ ' कहकर मुह फेर लेती
फिर आ जाती मुझे दया उसके चेहरे को देखकर
में चुपचाप पहुँच जाती नजदीक सरककर।


माँ बेटी का यह रिश्ता बहुत नाजुक है
और अपने आप में अदभुत है
इसी को शायद कुदरत का नमुना कहते है
ममता का लाजवाब बहाना कहते है।

लाजवाब बहाना Lajawab Bahana
Sunday, November 27, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Kavita Singh 25 January 2017

bahut hi lajawab....hota haimaa beti ka rishta....

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 27 November 2016

माँ बेटी का यह रिश्ता बहुत नाजुक है और अपने आप में अदभुत है इसी को शायद कुदरत का नमुना कहते है ममता का लाजवाब बहाना कहते है।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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