लखीआ लेख.... Lakhia Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

लखीआ लेख.... Lakhia

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लखीआ लेख

शनिवार, ४ अगस्त २०१८

लखीआ लेख मिटीया ना कोई
आफत सामने से बराबर आई
ना मुझे किसी की याद दिमाग में छाई
बस छूट गई तो पीछे मेरी हीपरछाई।

ना किसीका कोई हुआ है
मरने के बाद कोई पीछे गया है
ना जाना हमने ये राज क्या है?
फिर ज्यादा जीने की तमन्ना क्यों है?

ना पहचान सक्क खुद को!
और चला बर्बाद होने को
मायजाल में ऐसा फसा
उसने फिर अपना शिकंजा कसा।

ना वो मेरे थे
और नाही पराए थे
किराए के मकान में हम सभी रहते थे
ना किसी के रिश्तेदार थे और नाही अनजाने थे।

बस लगा लिया मन जो अपना ना था
और क्यों उसे दिल से अपनाना था?
सुख बस क्षणभंगुर था
खट्टा तो सिर्फ अंगूर ही था।

आज पता चला, मै ही गलत था
मुझे इनसे कोई मतलब नहीं था
जिनको मेरा होना ही नहीं था, उसे क्यों दिल लगाना था?
सब चीजों को तो मेरे हाथ से छूट ही जाना था।

हसमुख अमथालाल मेहता

लखीआ लेख.... Lakhia
Friday, August 3, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 03 August 2018

Matt PollockMatt You forge your own path in this life. 1 Manage Like · Reply · 1h

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Mehta Hasmukh Amathalal 03 August 2018

WELCOME WONAM Sonam Wangdi 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 03 August 2018

welcome matt pollock 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 03 August 2018

आज पता चला, मै ही गलत था मुझे इनसे कोई मतलब नहीं था जिनको मेरा होना ही नहीं था, उसे क्यों दिल लगाना था? सब चीजों को तो मेरे हाथ से छूट ही जाना था। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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