लेखनी तेरी... Lekhni Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

लेखनी तेरी... Lekhni

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लेखनी तेरी
गुरूवार, ११ अप्रैल २०१९

तुम तेजी से आगे बढ़ गई
पीछे हलके से मुस्कान बिखेर गई
मानो हवाका झोका आया
साथ में खुश्बु बिखेर गया

तुम लिखति रहो
बुलंदी छूती रहो
बस बादल बनके बरसते रहो
धरती की प्यास को बुजाते रहो।

नहीं थी हमारी पहचान
फिर भी काम था आसान
कविता संदेशा दे जाती थी
मन की बात कह जाती थी।

तुम्हारी लगन है
हम भी मगन है
साहित्य का चयन है
देखने वाले नयन है।

करो अपना खुद मूल्यांकन
और हो इसका आंकलन
हम तो करेंगे ही मनन
आप भी मनाओ अपना मन।

हसमुख मेहता

लेखनी तेरी... Lekhni
Thursday, April 11, 2019
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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