लोगों का होंसला Logon Kaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

लोगों का होंसला Logon Kaa

लोगों का होंसला

Wednesday, April 18,2018
8: 50 PM

लोगों का होंसला

देश आजझूझ रहा है
कभी जूठ सुन रहा है
कभी राजकारणियों के मनघडंत आरोपों से
या फिर उनके कारनामें से।

देश की संसद को चलने नहीं दिया
फिर भी अपना वेतनभत्ता नहीं जाने दिया
हर बातपर अड़ंगा, और खुल्ल्मखुल्ला मनमानी
कर रहे देश की बर्बादी।

सामान्यतः सांसद जवाबदार होते है
पर कोन्ग्रेस के हार जाने के बाद हालात बदले से है
सरकार को हर कदम, उनसे पूछकर ही लेना है
अपनी बात किसी तरह मनवा के रेहना है।

देश को हर बात याद है
कैसे देश को जातियों में बांटा गया है?
पछात और आदिवासी की हालत बदतर है
सत्तर साल के बाद भी बाद बी स्थिति बेहतर नहीं है।

हर बात में उनको बू आती है
देश का रक्षक आजकाल पत्थरों का सामना कर रहा है
दुश्मन देश का झंडा लहराया जा रहा है
आतंकवादियोंको भगाने में मददगार हो रहे है।

आज सूना है "पैसो की किल्लत हो गई है"
अपने ही लोग देश को खोखला करेने पर तुले है
पर हिन्दुस्तान इतना कमजोर नहीं है
लोगों का होंसला उनपर भारी पड़रहा है

लोगों का होंसला Logon Kaa
Wednesday, April 18, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 19 April 2018

ribhawan Kaul Bahut sahi kaha aapne :) _/\_ :) 1 Manage Like · Reply · 21h · Edited

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Mehta Hasmukh Amathalal 18 April 2018

आज सूना है पैसो की किल्लत हो गई है अपने ही लोग देश को खोखला करेने पर तुले है पर हिन्दुस्तान इतना कमजोर नहीं है लोगों का होंसला उनपर भारी पड़रहा है Hasmukh Amathalal

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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